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Showing posts from March, 2020

श्री रेणुका माता प्रार्थना स्तोत्र - मराठी | Shree Renuka mata prarthana stotra - Marathi | The Spiritual Indians

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 । ।श्री रेणुका माता प्रार्थना स्तोत्र ।।  अंबे एक करी, उदास न करी, भक्तास हाती धरी । विघ्ने दुर करी, स्वधर्म -उदरी, दारिद्र्य माझे हरी । चित्ती मुर्ती बरी, वराऽभय करी, ध्यातो तुला अंतरी । वाचा शुद्ध करी, विलंब न करी पावे त्वरे सुंदरी ॥ १ ॥ माते एकविरे, वराऽभयकरे, दे दु दयासागरे । माझा हेतु पुरे, मनात न उरे, संदेह माझा हरे । जेणे पाप सरे, कुबुद्धी विसरे, ब्रह्मैक्य-धी संचरे । देई पुर्ण करे भवाम्बुधी तरे ऐसे करावे त्वरे ॥ २ ॥ अनाथासी अंबे नको विसरु वो । भवस्सागरी सांग कैसा तरु वो । अन्यायी मी हे तुझे लेकरु वो । नको रेणुके दैन्य माझे करु वो ॥ ३ ॥ मुक्ताफलेः कुंकुमपाटलांगी । संदेह तारानिक रैविभाती । श्री मुलपिठांचलचुडिकाया । तामेकविरां शरणं प्रपद्ये ॥ ४ ॥ सखे दुःखिताला नको दुखवु वो । दिना बालकाला नको मुकलु वो । ब्रीदा रक्षी तु आपल्या श्री भवानी । हि प्रार्थना एकुनी कैवल्यदानी ॥ ५ ॥ ॥ इति श्रीरेणुकामाता प्रार्थना संपूर्णा ॥

श्रीकृष्ण के साथ कोरोना पर मात| Shree Krishna Ke Saath Corona par Maat | The Spiritual Indians

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              श्रीकृष्ण के साथ कोरोना पर मात महाभारत के युद्ध में एक तरफ बहोत बडे-बडे योध्दा थे।  जो की अधर्म के साथ थे और धर्म सिर्फ श्रीकृष्ण और पांडव थे। धर्म की जीत हो इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में धोखा करना पड़ा।   युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये। उन्होंने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र "नारायण अस्त्र" छोड़ दिया। इसका कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था।यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था। भगवान श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र शस्त्र  छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया। और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है। नारायण अस्त्र धीरे धीरे  अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया। इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी। इस कथा प्रसंग का औचित्य समझें? हर जगह लड़ाई सफल नहीं होती।प्रकृति के प्रको...

श्रीराम ची आरती-मराठीत| Shree Ram Aarti Marathi | The Spiritual Indians

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श्रीराम ची आरती-मराठीत                 भाग-१         श्रीराम जय राम जय जय राम।          आरती ओवाळून पाहु सुंदर मेघश्याम।। धृ।।           दशरथनंदन कौसल्या सुत।           राज्य अभिषेक होतो बहु थाटात।। १।।          कनकाचे ताट करी धनुष्यबाण।           मारुती हा पुढे उभा हात जोडुन।। २।।          भरत शत्रुघ्न दोघे चामरें ढाळिती।          सिंहासनी आरुढले जानकी पती।। ३।।         विष्णूदास नामा म्हणे मागणे हेची।         अखंडीत सेवा घडो राम चरणांची।। ४।।                                        भाग-२       त्रिभुवनमंडितमाळ शोभतसे गळां ।     ...

रामायण और महाभारत पुनः प्रक्षेपण

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रामायण और महाभारत पुनः प्रक्षेपण  खुशखबर! खुशखबर! आज से रामायणका पुनः प्रक्षेपण शुरू होने वाले हैं। जो रोज सुबह 9 बजे भाग - १ और रात को 9 बजे भाग-२ इस प्रकार से दिखाया जाने वाला हैं। जो DD-National- Tata Sky channel no. - 114 पर दिखाया जाएगा आप  सभी इसका लाभ उठायें। महाभारत भी आज से ही शुरू हो गया है। जो सुबह-12 बजे और शाम- 7 बजे होने वाला हैं। DD-Bharati पर दिखाया जाएगा। Tata sky channel no. 1194 पर दिखाया जाने वाला है। आप सब उसका लाभ उठायें। 

श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र - संस्कृत | Shree Mahishasurmardini Stotra - Sanskrit| The Spiritual Indians

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।। श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र।।  अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते । मधुमधुरे मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥ अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते । निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते । दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते जय जय ह...

स्वामी चरित्र अवतणिका. Swami Charitra Avatarnika .The Spiritual Indians

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   स्वामी चरित्र अवतणिका   श्री गणेशाय नमः| श्री सरस्वत्यै नमः|   श्री गुरूभ्यो नमः| श्री कुलदेवताय नमः|   श्री अक्कलकोट निवासी-पूर्णदत्तावतार-   दिगंबर यतिवर्य स्वामिराजाय नमः|   ब्रह्मनंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्ती।   द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।   एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी साक्षिभूतं।   भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरूं तं नमामि।।   प्रथमाध्यायी मंगलाचरण। कार्यसिध्द्यर्थ देवतास्तवन।   आधार स्वामी चित्रास कोण। हेची कथन केले ए।। १।।   श्रीगुरु कर्दळी वनातुनी आले। स्वामी रुपे प्रगटले।   भूवरी प्रख्यात झाले। हे कथन द्वितीयाध्यायी।। २।।    तारावया भक्तजनाला। अक्कलकोट प्रवेश केला।    तेथीचा महिमा वर्णिला। । तृतीयाध्यायी निश्चये।। ३।।      स्वामींचा करावया छळ। आले दोन संन्यासी खल।    तेचि वृत्त सकल। चवथ्यामाजी वर्णिले।। ४।।      मल्हारराव राजा बडोद्यासी। त्याने न्यावया स्वामींसी।    पाठविले कारभार्यांसी। पाचव...

श्रीविष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्र - संस्कृत | Shree Vishnusahastranam Stotra - Sanskrit| The Spiritual Indians

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श्रीविष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्र   श्री परमात्मने नमः । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । अथ श्रीविष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्रम यस्य स्मरणमात्रेन जन्मसंसारबन्धनात्‌ । विमुच्यते नमस्तमै विष्णवे प्रभविष्णवे ॥ नमः समस्तभूतानां आदिभूताय भूभृते । अनेकरुपरुपाय विष्णवे प्रभविष्णवे ॥ वैशम्पायन उवाच श्रुत्वा धर्मानशेषेण पावनानि च सर्वशः । युधिष्टिरः शान्तनवं पुनरेवाभ्यभाषत ।१। युधिष्टिर उवाच किमेकं दैवतं लोके किं वाप्येकं परायणम्‌ । स्तुवन्तः कं कमर्चन्तः प्राप्नुयुर्मानवाः शुभम्‌ ।२। को धर्मः सर्वधर्माणां भवतः परमो मतः । किं जपन्मुच्यते जन्तुर्जन्मसंसारबन्धनात्‌ ।३। भीष्म उवाच जगत्प्रभुं देवदेवमनन्तं पुरुषोत्तमम्‌ । स्तुवन्नामसहस्त्रेण पुरुषः सततोत्थितः ।४। तमेव चार्चयन्नित्यं भक्त्या पुरुषमव्ययम्‌ । ध्यायन्स्तुवन्नमस्यंश्च यजमानस्तमेव च ।५। अनादिनिधनं विष्णुं सर्वलोकमहेश्वरम्‌ । लोकाध्यक्षं स्तुवन्नित्यं सर्वदुःखातिगो भवेत्‌ ।६। ब्रह्मण्यं सर्वधर्मज्ञं लोकानां कीर्तिवर्धनम्‌ । लोकनाथं महद्‌भूतं सर्वभूतभवोद्भभवम्‌ ।७। एष मे सर्वधर्माणां धर्माऽधिकतमो मतः । यद्...

श्री राम रक्षा स्तोत्र . Shree Ram Raksha Stotra in Sanskrit | The Spiritual Indians

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                                                                 || श्री राम रक्षा स्तोत्र  || विनियोग:  श्रीगणेशाय नमः| अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः। अथ ध्यानम्‌: ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम। चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥1॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम्‌ ॥2॥ सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम्‌ । स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥3॥ रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्‌ । ...

श्रीमद्भागवत गीता १ला अध्याय-संस्कृत | Shreemad Bhagvad Geeta 1 Adhyay - Sanskrit|The Spiritual Indians

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     श्रीमद्भागवत गीता १ला अध्याय-संस्कृत               धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१॥             संजय उवाच दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌॥२॥ पश्यैतां पाण्डुपुत्राणा-माचार्य महतीं चमूम्‌। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥३॥ अत्र शूरा महेष्वासाभीमार्जुनसमा युधि। युयुधानो विराटश्चद्रुपदश्च महारथः॥४॥ धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्‌। पुरुजित्कुन्तिभोजश्चशैब्यश्च नरपुङवः॥५॥ युधामन्युश्च विक्रान्तउत्तमौजाश्च वीर्यवान्‌। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥६॥ अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥७॥ भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥८॥ अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः। नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥९॥ अप...

श्रीमद्भागवत गीता का १२वा अध्याय - संस्कृत में | Shreemad Bhagvad Geeta 12 Adhyay | The Spiritual Indians

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                            ॐश्रीपरमात्मने नमः                               अथ द्वादशोऽध्यायः अर्जुन उवाच - एवं सततयुक्ता ये भक्ता-स्त्वां पर्युपासते । ये चाप्यक्षरमव्यक्तंतेषां के योगवित्तमाः ॥१२- १॥ श्रीभगवानुवाच - मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते । श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥१२- २॥ ये त्वक्षरमनिर्देश्यम- व्यक्तं पर्युपासते । सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम् ॥१२- ३॥ संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः । ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ॥१२- ४॥ क्लेशोऽधिकतरस्तेषा-मव्यक्तासक्तचेतसाम् । अव्यक्ता हि गति- र्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते ॥१२- ५॥ ये तु सर्वाणि कर्मणि मयि संन्यस्य मत्पराः । अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥१२- ६॥ तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् । भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥१२- ७॥ मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय । निवसिष्यसि मय्येव अ...